मुंबई का “प्लेसिंग ड्रीम्स” जहाँ सपनों की कड़ियों को जोड़ा जाता है, उड़ान दिया जाता है – डिफ़्फेरेंटली 

सपनों को उड़ान देते प्लेसिंग ड्रीम्स के नन्दन झा 

मुम्बई से अनामिका दत्ता 

बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के बेनीपुर गाँव से मुंबई की मानसिक दूरी लगभग उतनी ही है, जितनी मधुबनी जिला के ब्रह्मपुर गाँव से। मुजफ्फरपुर के बेनीपुर गाँव में सं 1899 में अम्बपाली, सीता की मान, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुन्तला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव के देवता, नया समाज और विजेता नामक कहानियों के रचनाकार श्री रामबृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म हुआ था।

प्रारब्ध देखिए अम्बपाली नामक रचना में जिस अम्बपाली जैसी सुन्दर नारी पर श्री बेनीपुरी जी ने कहानी लिखे, उस अति प्रसिद्ध नारी का जन्म भी उसी भूमि में हुआ था, जहाँ श्री बेनीपुरी जी का जन्म हुआ था। तत्कालीन हिंदी साहित्य के हस्ताक्षरों ने तो यहाँ तक कह डाले की “वज्जियों” के आठ कुलों में शायद श्री बेनीपुरी जी का भी वंश है और जिनकी संघ-शक्ति ने वैशाली को महानता और अमरता प्रदान की। श्री बेनीपुरी बिहार के मूर्धन्यों में से एक थे। हिन्दी साहित्य, या यूँ कहिए कि अपने सपने को साकार करने की प्रतिबद्धता के कारण श्री बेनीपुरी जी आज भी जीवित हैं। 

अम्बपाली में श्री बेनीपुरी जी ने “सपने” को लेकर जिस तरह मधुलिका-अम्बपली संवाद को उद्धृत किया है, आज मुद्दत बाद “कुछ वैसे ही सपनों को बिहार के मधुबनी जिले के ब्रह्मपुर गाँव का एक युवक अपने गाँव से लगभग 2000 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के मुंबई शहर में पूरा कर रहा है। बिहार ही नहीं, बंगाल ही नहीं, असम ही नहीं, अवध ही नहीं, दिल्ली ही नहीं, हिमाचल ही नहीं – भारत राष्ट्र के सभी कोने में रहने वाले कलाकारों के सपनों के एक-एक तार को जोड़कर एक नया आयाम दे रहा है – सपनो के नगर मुंबई में। 

मधुलिका ने अम्बपाली से कहा था: “सपने-सपने में फर्क होता है और फर्क होता है रूप-रूप में! एक सपना होता है, जिसमें आदमी डरकर आँखें खोल देता है और एक सपना होता है, जिसमें जग जाने के बाद भी आदमी आँखें मूँद लेता है कि एक बार फिर उसकी कड़ियाँ जोड़ सके!”

ये भी पढ़े   18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'माई मर्करी' का मानना है कि "जब लापरवाह मानवीय खतरों के कारण प्रकृति विनाश के कगार पर हो, तो हम बेचैन नहीं हो सकते"

मिथिला के नंदन झा बिहार के अनेकानेक कलाकारों के साथ भारत के युवाओं-युवतियों के सपनों की कड़ियाँ को जोड़कर, उन्हें मुंबई के फिल्म जगत में छोटे से बड़े पर्दों पर अपनी – अपनी पहचान दे रहे हैं।  आपको विस्वास नहीं होगा कि नंदन जी की संस्था “प्लेसिंग ड्रीम्स” को भारत में तीसरे उच्चतम रेटेड सर्वश्रेष्ठ फिल्म संस्थान के रूप में दर्जा दिया गया है। आज मुंबई में अपनी जिंदगी को, अपने सपने को साकार करने हेतु आने वाले कलाकारों की अन्तःमन से इक्षा होती है कि वह “प्लेसिंग ड्रीम्स” का “ड्रीम गर्ल बने या फिर ड्रीम बॉय। 
 
नन्दन झा खुद एक मध्यम वर्गीय भारतीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं और इसलिए उन्हें पता है कि इस तरह के प्रतिस्पर्धी स्थान पर नाम कमाने के लिए संघर्ष और अपार मेहनत करनी पड़ती है। आप दिशाओं को जाने बिना तूफानी महासागर से नहीं जा सकते हैं।  नन्दन जी कहते हैं: जीवन-यात्रा और जीवन के उत्कर्ष पर पहुँचने के लिए सपना देखना और सपने पर अमल करना नितांत आवश्यक है। सपने देखना एक मनुष्य की जीवन यात्रा में कम्पास के जैसा होता है जो उस मनुष्य को जीवन में कभी दिशाहीन नहीं होने देता।”

आएं अपने सपनों को पंख दें मुंबई में 

एक बातचीत के दौरान फिल्म जगत के हस्ताक्षर श्री मनोज वाजपेयी ने कहा था: “प्रत्येक मनुष्य जन्म से कलाकार होता है। जीवन क्रम में परिस्थितियाँ उसे विभिन्न कलाओं के प्रति आकर्षित, विकर्षित करती हैं। मैं स्वयं एक दृष्टान्त हूँ। कोई टूट का चकनाचूर हो जाता है, कोई अर्धमृत होकर भी सपना देखना, जीवन को सँवारना नहीं छोड़ता है। कबड्डी जैसा खेल है जीवन। अगर सांस टूर गई तो हार गए, अगर सांस बचा पाए तो विजय हो गए। कलाकारों को सपना देखना होता है, सपनों को बुनना होता है, और फिर अपनी मेहनत और सपनों को पूरा करने की प्रतिबद्धता के साथ अपने जीवन के उत्कर्ष पर आगे बढ़ना होता है। 

ये भी पढ़े   सुशांत सिंह राजपूत के बहाने: बिहार के कलाकारों ने बॉलीवुड से लेकर पूरी दुनिया में लिखी कामयाबी की नयी इबारत, लेकिन ...

नंदन झा ने प्लासिंग ड्रीम्स को एक नियमित संस्थान के बजाय एक परिवार की तरह बनाया है, जहाँ परिवार का प्रत्येक सदस्य समान रूप से महत्वपूर्ण है। सर्वश्रेष्ठ संकाय से लेकर सबसे उन्नत सुविधाओं और प्रौद्योगिकियों तक, इस संस्थान के पास उपलब्ध है । प्लेसिंग ड्रीम्स संस्था मुंबई फिल्म-कला जगत में उपलब्ध सभी साज-सज्जाओं-सुविधाओं से युक्त है। यह सुविधा देश के एक औसत-परिवार के बच्चे भी, जिन्हे फिल्म-कला जगत में अपना नाम, शोहरत कामना है, उठा सकते हैं, जो कि इस उद्योग की व्यापक प्रकृति को देखते हुए आश्चर्यचकित कर सकता है।  

वैसे तो फिल्म उद्योग में काम करना 21 वीं सदी के सबसे ग्लैमरस करियर में से एक माना जाता है। वैसे लोगों का मानना है कि फिल्म जगत में सफलता की दर अन्य कैरियर पथों की तुलना में सबसे कम है।  यही कारण है कि लोग रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जिनके खून में ही “कला के प्रति सम्मान हो”, जो कला के लिए ही जन्म लिए हों, उनका क्या? वो तो आएंगे ही। लेकिन अपने साथ औरों को भी लाएंगे, ताकि “देश में कलाकारों की किल्लत कभी नहीं हो, भारतीय कला हमेशा जीवित रहे। और यही कारण है कि लोग सपने देखते हैं। 

वजह यह है कि “हर सपना मायने रखता है” और नंदन झा को वास्तव में इसका एहसास है। झा का मानना है कि हर किसी को वह करने का अधिकार है जो वह करना पसंद करता है और इसलिए वह अपने प्रमुख संस्थान प्लेसिंग ड्रीम्स सपनों के साथ पूरे उद्योग में क्रांति ला रहा है। एनएसडी और एफटीआईआई के बाद सपनों को जगह देना भारत में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त फिल्म संस्थान है। खैर, यह सिर्फ रेटिंग नहीं है, संस्थान द्वारा प्रत्येक सपने को पूरा करने के लिए लगाए गए सभी देखभाल और कड़ी मेहनत हर दूसरे पहलू से अधिक है।   

ये भी पढ़े   सरकार को छोड़िये, 'सुओ-मोटो' के साथ अब तक तो सर्वोच्च न्यायालय को कूद जाना चाहिए था, ताकि 'बॉलीवुड के संभ्रांतों' के हाथों कलाकार 'मृत्यु के द्वार' प्रेषित न हों 

हर साल, पचास छात्र इस प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला लेते हैं और अपने जीवन की एक नई यात्रा शुरू करते हैं। इसलिए, सपने देखना वास्तव में उत्साही लोगों के लिए कदम रखना है। एक्टिंग, डायरेक्शन, राइटिंग, एडिटिंग और फिल्म मेकिंग से लेकर प्लेसींग ड्रीम्स हर तरह के कोर्स मुहैया कराते हैं। इसलिए, समग्र पाठ्यक्रम निस्संदेह यहां पढ़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए समृद्ध है। उद्योग में काम कर रहे कई सफल पूर्व छात्रों के नेटवर्क के साथ और जिस गति के साथ संस्थान बढ़ रहा है, यह स्पष्ट है कि सपने रखना सबसे अच्छा फिल्म संस्थान है जिसे आप इस देश में पा सकते हैं।

प्लेसिंग ड्रीम्स केवल सैद्धांतिक रूप से शिक्षण के बजाय ऑन-शूट अनुभव प्रदान करके व्यवसाय में सबसे अनूठा प्रशिक्षण प्रदान करता है। छात्रों को लाइव शूट पर जाने के लिए मिलता है जो उन्हें सीखने की अवधारणाओं के सटीक कार्यान्वयन को समझने में मदद करता है। इसके अलावा, उन्हें बॉलीवुड अभिनेताओं, निर्देशकों, कैमरेंपर्स, संपादकों, पटकथा लेखकों, गायकों और अन्य तकनीशियनों के साथ बातचीत करने का अमूल्य अवसर मिलता है। छात्रों को अनुभवी उत्पादन घरों की सहायता करने और कार्यस्थल का वास्तविक विचार प्राप्त करने के लिए मिलता है। बड़े एक्सपोज़र के लिए छात्रों को डॉक्यूमेंट्री और लघु फ़िल्में बनाने के लिए मिलती हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भेजा जाता है और सूची यहाँ समाप्त नहीं होती है, यहाँ तक कि वे प्रतिष्ठित हस्तियों द्वारा आयोजित नियमित कार्यशालाओं में भी शामिल होते हैं। छात्रों की प्रगति की परीक्षा के लिए भी परीक्षा आयोजित की जाती है, जिसे उन्हें किसी अन्य पाठ्यक्रम में पदोन्नत करने के लिए उत्तीर्ण होना चाहिए।  

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here