केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा: “दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 2020 आशा पारेख जी को,” राष्ट्रपति पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता करेंगी

आशा पारेख और राजेश खन्ना (तस्वीर: प्रिन्टरेस्ट के सौजन्य से)

नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आज घोषणा की है कि वर्ष 2020 के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को दिया जाएगा। ये पुरस्कार नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में प्रदान किया जाएगा।

इस निर्णय की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने कहा, “मुझे ये घोषणा करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की जूरी ने भारतीय सिनेमा में आशा पारेख जी के जीवन भर के अनुकरणीय योगदान को मान्यता देने और उन्हें पुरस्कृत करने का निर्णय लिया है।” मंत्री महोदय ने ये भी घोषणा की कि 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह का आयोजन 30 सितंबर, 2022 को होगा और इस समारोह की अध्यक्षता भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु करेंगी।

सुश्री आशा पारेख एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री, निर्देशक, निर्माता और एक कुशल भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना हैं। एक बाल कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू करते हुए उन्होंने फिल्म ‘दिल दे के देखो’ में मुख्य नायिका के तौर पर अपनी शुरुआत की और 95 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने कटी पतंग, तीसरी मंजिल, लव इन टोक्यो, आया सावन झूम के, आन मिलो सजना, मेरा गांव मेरा देश जैसी मशहूर फिल्मों में अभिनय किया है।

आशा पारेख और धर्मेंद्र – दशकों बाद

आशा पारेख 60 के दशक की मशहुर अभिनेत्रियों में से एक है. 1959 से लेकर 1973 तक वह बॉलीवुड फिल्मों की टॉप अभिनेत्रियों में शामिल रही. बहुत कम उम्र से ही उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया. 17 साल की उम्र में उन्होंने बतौर अभिनेत्री फिल्म ‘दिल दे के देखो’ जोकि शम्मी कपूर के साथ थी, में अभिनय किया. और वह फ़िल्म दर्शकों को खूब पसंद आई. फ़िल्म बहुत हिट हो गई साथ ही आशा पारेख जी का भी सफल फ़िल्मी सफ़र शुरू हो गया. उन्होंने बहुत सारे अवार्ड भी जीते है. 

आशा पारेख जी ने कुल 90 फिल्मों में काम किया है उनके फिल्मों के नाम- ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘घराना’, ‘छाया’ जोकि 1961 में आई थी, ‘फिर वही दिल लाया हु’, ‘मेरी सूरत तेरी आँखे’, ‘भरोसा’, ‘बिन बादल बरसात’ जोकि 1963 में आई, ‘बहारों के सपने’, ‘उपकार’ जो कि 1967 में आई थी, ‘प्यार का मौसम’, ‘साजन’, ‘महल’, ‘चिराग’, ‘आया सावन झूम के’ जो 1969 में आई, ‘फिर आई कारवां’, ‘नादान’, ‘जवान मोहब्बत’, ‘ज्वाला’, ‘मेरा गाव मेरा देश’ जो के 1971 में आई थी। इस तरह से आशा जी ने फिल्मों की झड़ी लगा दी। 

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एक रिपोर्ट जके अनुसार, वे एक साधारण से मध्यम वर्गीय गुजराती जैन परिवार में जन्मी थी। बचपन में कभी वो डॉक्टर तो कभी आई एस अधिकारी बनने के बारे में सोचती थी। बहुत छोटी सी उम्र से ही उनकी माता जी ने उन्हें डांस सिखाने के लिए विभिन्न डांस इंस्टिट्यूट में उनका दाखिला कराती रहती थी। वे उन्हें एक अच्छी डांसर बनते देखना चाहती थी। बहुत से डांस के शिक्षकों ने उन्हें डांस की तालीम दी, जिनमे से एक डांस के शिक्षक पंडित बंसीलाल भारती का भी नाम है जो बहुत ही उच्च कोटि के डांस शिक्षक थे। इस वजह से आशा जी एक बहुत ही मजी हुई शास्त्रीय नृत्यांगना बन गई, और उन्होंने कई बड़े डांस शो भी किये है. वे विदेशों में भी अपना नृत्य शो करने जाती थी। 

आशा पारेख जी अब भी बहुत सक्रीय है। वह एक डांस एकेडमी भी चलाती है जिसका नाम है कारा भवन। आशा पारेख बहुत ही खुश मिजाज और जिंदादिल इंसान है। वे बहुत ही उदार प्रवृति की है, वे बहुत सारे सामाजिक कार्यों से भी जुडी हुई है। इस वजह से उनके नाम पर मुम्बई में एक अस्पताल का नाम दिया गया है द आशा पारेख हॉस्पिटल। आशा पारेख जी भारतीय सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रह चुकी है, इसके साथ ही उन्होंने 1994 से लेकर 2000 तक भारतीय फ़िल्म सेंसर बोर्ड की महिला अध्यक्ष के पद भार को भी संभाली. जो कि इतिहास बन गया क्योंकि इससे पहले किसी भी महिला को यह पद प्राप्त नहीं हुआ था। वह पहली ऐसी महिला बनी जो भारतीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष बनी। 

उन्होंने कभी शादी नहीं की लेकिन उनका नाम फ़िल्म के निर्देशक नसीर हुसैन के साथ जुडा रहा। आशा जी ने इस बात को माना भी, कि वे दोनों लबें समय तक दोस्त थे दोस्त से भी बढ़कर थे।  उनकी बीवी के मरने के बाद वो अकेलापन में जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे उनसे बात करना चाह रही थी, लेकिन इससे पहले ही 2002 में वो चल बसे। आशा जी आज भी अपने दोस्तों के साथ बातें करना बहुत पसंद करती है। हाल ही में उन्होंने अपना 70वां जन्मदिन सुस्मिता सेन, अरुणा ईरानी के अलावा और भी फ़िल्मी हस्तियों के साथ मनाया है। एक दौर था जब कोई भी अभिनेत्री बॉलीवुड के सुपर स्टार दिलीप कुमार साहेब के साथ काम करने के सपने देखती थी, लेकिन आशा जी ने कभी भी दिलीप कुमार के साथ काम करने की अपनी इच्छा नहीं जताई क्योंकि वो उन्हें उतना पसंद नहीं थे। शम्मी कपूर उनके पसंदीदा हीरो रहे है उन्होंने उनके साथ चार रोमांटिक फिल्मे भी की है। हमेशा वो एक दुसरे के साथ मस्ति करते रहते है और शम्मी कपूर उन्हें छेड़ते हुए भतीजी बुलाते है और आशा जी उनको चाचा बुलाती है। 

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आशा पारेख के परिवार में उनकी माता जी जोकि मुस्लिम थी और जिनका नाम सुधा पारेख था, तथा पिता जोकि हिन्दू थे और उनका नाम प्रनालाल पारेख था थे। उनके माता और पिता दोनों ही अलग अलग धर्मों से थे, लेकिन फिर भी इनका परिवार साई बाबा का भक्त था। एक समय जब वो अपनी माँ के साथ ट्रेन में यात्रा कर रही थी, तब उनकी माँ ने देखा कि कुछ यात्री उनकी लाडली के चेहरे के भावों को देखकर आनंदित हो रहे है, तब से उनकी माता जी को यह अहसास हो गया था वो कुछ अलग करेंगी। आशा जी अपने माता पिता की एकलौती संतान है। इसलिए वह अपने माता पिता की बहुत लाडली भी थी। अपनी माता जी की मृत्यु के बाद वह बड़े बंगले से एक छोटे से आपार्टमेंट में रहने लगी।  

आशा पारेख जी ने बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय की शुरुआत सन 1952 में फ़िल्म आसमान से की। आशा जी स्टेज शो किया करतीं थी और नृत्य स्टेज शो के ही कार्यकम में उनकों फ़िल्म के मशहुर निर्देशक विमल रॉय जी ने देखा, वो उनके नृत्य को देख कर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उसी समय आशा जी से पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करने के लिए तैयार है, आशा जी का जवाब हाँ था और इस तरह से उनका बॉलीवुड फिल्मों का सफ़र शुरू हुआ। 

विमल रॉय जी के निर्देशन में बनी फ़िल्म बाप बेटी में आशा जी ने अभिनय किया जो कि 1954 में आई थी। उस वक्त आशा जी बहुत ही छोटी थी उस समय वह 10 वी कक्षा में पढ़ती थी। यह फ़िल्म बहुत ज्यादा नहीं चली और आशा जी को निराशा हाथ लगी। फिर 17 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में फिर से अपने अभिनय को तलाशने की शुरूआत की, लेकिन एक फ़िल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में उन्होंने दो दिन की शूटिंग की। जिसमे विजय भट्ट ने उन्हें निकाल दिया था। विजय भट्ट ने उन्हें लेने से मना कर दिया साथ ही उन्होंने आशा जी के बारे में ये भी कहा की वो हीरोइन नहीं बन सकती, क्योंकि वो इस काम के लायक नहीं है। जबकि बाल कलाकार के रूप में चैतन्य महाप्रभु में उन्होंने विजय जी के साथ काम किया था। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश को जारी रखा, और उन्हें सफलता भी मिली। उन्हें 1959 में फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी द्वारा फ़िल्म ‘दिल दे के देखो’ का ऑफ़र मिला जिसका निर्देशन नासिर हुसैन जी कर रहे थे। यह फ़िल्म उस समय की हिट फ़िल्म रही और आशा जी फ़िल्म इंडस्ट्रीज में सफल अभिनेत्री बन गई फिर उनके सफलता का दौर निकाल पड़ा। 

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सुश्री पारेख पद्मश्री से सम्मानित हैं जो उन्हें 1992 में दिया गया था। उन्होंने 1998-2001 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के प्रमुख के रूप में भी काम किया है।

श्री अनुराग ठाकुर ने ये भी घोषणा की कि सुश्री पारेख को पुरस्कार देने का निर्णय पांच सदस्यों की जूरी द्वारा लिया गया था। 52वें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के चयन के लिए इस जूरी में फिल्म उद्योग के ये पांच सदस्य शामिल थे: सुश्री आशा भोसले, सुश्री हेमा मालिनी, सुश्री पूनम ढिल्लों, श्री टी. एस. नागभरण श्री उदित नारायण।

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