देवियों और सज्जनों !!! यमुना नदी के नाम पर ‘घड़ियाली आंसू’ नहीं बहाएं, यमुना अब डायनासोर प्रजाति के घड़ियाल का नया प्रजनन केन्द्र है 

चम्बल नदी 
चम्बल नदी 

यमुना नदी के किनारे बैठ कर या फिर यमुना नदी के नाम पर “अपने हित के लिए, चाहे सामाजिक हो, आर्थिक हो, राजनीतिक हो, पर्यावरणीय हो, या अन्य कुछ; अब “घड़ियाली आँसू” बहाना तत्काल बंद कर दें।  यह नहीं कहेंगे की ‘पहले सूचित नहीं किये’ – क्या पता कब आप सच में भी आंसू बहाने लायक भी नहीं रह पाएं और घड़ियाल घोंट ले । क्योंकि डायनासोर प्रजाति के घड़ियाल अब श्रापित चंबल नदी को छोड़कर यमुना नदी को अपना नया “प्रजनन-केंद्र” और आशियाना बनाया है। समझ गए न !!

मऊ, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, जालौन, कानपुर देहात, राजस्थान के कोटा तक कोई 900 किमी क्षेत्र में बहने वाली चम्बल नदी बीहड़ के बीचो बीच से निकलती है। यह भारत की इकलौती नदी है जो प्रदूषण से मुक्त है, पर इसके जल को न तो इंसान पी सकते हैं और न ही जानवर  – क्योंकि यह श्रापित नदी है। वेदों  में,पुराणों में चरणावती के नाम से उल्लेखित चंबल नदी को श्रापित नदी माना जाता है।  इस नदी का उल्लेख महाभारत काल में विशेषरूप से है। दंत कथाओं के अनुसार इसी नदी के किनारे मुरैना के पास शकुनी ने जुएं में पांडवों को पराजित कर द्रौपदी का चीरहरण किया था। तभी क्रोधित होकर द्रौपदी ने नदी को श्राप दिया की जो इस नदी के जल का इस्तेमाल करेगा उसका अनिष्ट होगा। बहरहाल इन दंतकथाओं का नतीजा ये हुआ कि इस नदी के किनारे आबादी कम ही बसी और इसी वज़ह से ये आज इतनी साफ सुथरी है। 

बहरहाल, देश की सबसे प्रदूषित नदियों मे शुमार यमुना नदी में सैकड़ों नन्हे घड़ियालों की मौजूदगी इस बात का संकेत दे रही है कि डायनासोर प्रजाति के जलीय जीव प्रजनन के लिये चंबल नदी को छोड़कर यमुना को अपना नया आशियाना बना रहे है। उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भाउपुरा गांव के पास प्रवाहित यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन करके करीब तीन दर्जन से अधिक बच्चो को जन्म दिया है। घड़ियाल के इन बच्चो को देखने के लिए सुबह शाम बडी तादाद मे गांव वाले नदी के किनारे पहुंचते है ।

पर्यावरणविदों का मानना है कि घड़ियालों की मौजूदगी उस अवधारणा को खारिज करती प्रतीत हो रही है कि प्रदूषित जल मे घड़ियाल का प्रजनन नही होता है। इससे यह उम्मीद भी बंध चली है कि आने वाले दिनो मे चंबल के अलावा यमुना नदी भी घडियालो के प्रजनन के लिये एक मुफीद प्राकृतिक वास बन सकेगा । भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डा.राजीव चौहान का कहना है कि यमुना नदी मे घड़ियाल का प्रजनन यह इंगित करता है कि इस क्षेत्र मे यमुना नदी के पानी मे शुद्धता बढ रही है और यह क्षेत्र घड़ियालो का प्राकृतिक आवास बन सकता है। यमुना के जल को शुद्व बनाने के प्रयास कारगर साबित होते हुए दिख रहे है और आने वाले दिनो मे यमुना नदी जैव विविधता के संरक्षण का एक नया माॅडल साबित हो सकता है।

उन्होने कहा कि असल मे यमुना नदी का पानी आगरा के बटेश्वर के बाद काफी हद तक साफ होना शुरू हो जाता है और भाउपुरा स्थित गांव के पास यमुना नदी मे घडियाल ने प्रजनन किया है वो बटेश्वर से अधिक दूरी पर नहीं है, इसलिए यह स्पष्ट है कि यमुना के जल मे कहीं ना कहीं बदलाव आ रहा है,तभी तो घड़ियाल प्रजनन के लिए यमुना की ओर से आकर्षित हो रहे है। डा चौहान ने कहा कि फिर भी एक बड़े स्तर के शोध की जरूरत है क्योंकि यह पहला मौका नही है जब किसी घड़ियाल ने यमुना नदी में प्रजनन किया हो, इससे पहले भी साल 2011,2019 और अब भाउपुरा में प्रजनन करके पर्यावरण विशेषज्ञों को हैरत मे डाला है ।

ये भी पढ़े   प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर कहीं 'जल संरक्षण संग्रहालय' का उद्घाटन, तो कहीं कुनो नॅशनल पार्क में मोदीजी आठ जंगली चीतों को छोड़ा

सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के सचिव संजीव चौहान बताते हैं कि 15 जून को यमुना नदी मे मादा घड़ियाल ने यमुना नदी के किनारे अंडे फोडे जिनसे निकलते हुए छोटे छोटे बच्चे देखे गये। उनकी संस्था वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में काम करने में इटावा एवं आसपास के जिलों में सक्रिय है। इस लिहाज से उन्होंने दर्जनों के हिसाब से संस्था के वालंटियरो को एक्टिव कर रखा है जो इलाके में होने वाली गतिविधियों की जानकारी समय समय पर साझा करते रहते है ।
यमुना नदी में घड़ियालो के प्रजनन की खबर मिलने के बाद उनके संरक्षण के लिए गॉव वालो की मदद ली जा रही है । इलाकाई वन दरोगा ताबिश अहमद ने बताया कि घड़ियाल के प्रजनन के बाद पर्यावरण विशेषज्ञ भाउपुरा गांव को अपना अध्ययन केंद्र बना रहे है । ताबिश बताते है कि जब यमुना नदी मे घडियाल के प्रजनन की जानकारी सामने आई तो बिना मौके पर आये यकीन कर पाना संभव नही था इसलिए मौके पर आया तो देखा कि जो सूचना घडियालो को लेकर दी गई थी वो पूरी तरह सच पाई गयी। साथ ही एक नई उम्मीद यह भी जताती है कि यमुना जैसी प्रदूषित नदी मे घडियाल का प्रजनन एक नये आशियाने की ओर इशारा कर रहा है ।

पिछले साल जून माह मे इटावा मे सुमेर सिंह के किले के नीचे यमुना नदी मे घड़ियाल ने प्रजनन किया था। इससे पहले साल 2011 मे भी यमुना नदी मे इटावा के ही हरौली गाॅव के पास भी एक घडियाल ने इसी तरह से प्रजनन किया था । तब यहाॅ करीब पचास के आसपास बच्चे देखे गये थे । इन बच्चो को यमुना नदी के देखे जाने के बाद खासी चर्चा हुई थी ।

इटावा के प्रभागीय वन निदेशक राजेश कुमार वर्मा ने बताया कि यमुना नदी मे घड़ियाल का प्रजनन निश्चित तौर पर अपने आप मे सुखद अहसास कराने वाली सूचना है। घडियाल के मासूम बच्चो की सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय वन रक्षको की टीम के साथ साथ स्थानीय गांव वालो को भी सजग कर दिया गया है । ऐसा माना जा रहा है कि यमुना नदी का जल घडियालो के प्रजनन के मुफीद बन गया है तभी घडियाल ने यहाॅ पर प्रजनन किया है । गौरतलब है कि 2007 मे जब इटावा मे घड़ियालो की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात घडियाल विशेषज्ञो की ओर से प्रभावी तौर पर कही जाने लगी कि यमुना नदी मे हुये प्रदूषण की वजह से दुर्लभ प्रजाति के घडियालो की मौत हुई है लेकिन इस बात को कोई भी घडियाल विशेषज्ञ साबित नही कर पाया कि घडियालो की मौत यमुना नदी के प्रदूषण का नतीजा है।

ये भी पढ़े   जावड़ेकर साहेब यह नहीं बताये की भारत में "बाघिन" कितनी है? बाघों की आबादी 2967 तो हो गयी 

दिसंबर 2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों से अधिक घडियालों की मौत हुई थी । उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था । ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडियाल किताब का हिस्सा बनकर न रह जाएं। घडियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।

घडियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर सिरोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण को घडियालों की मौत का कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घडियालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।

यमुना नदी मे घडियाल ने प्रजनन करके एक नया इतिहास लिखा है उसी यमुना नदी को अपने प्राकृृतिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है । यमुना नदी के किनारे दिल्ली, मथुरा व आगरा सहित कई बड़े शहर बसे हैं। ब्लैक वाॅटर में तब्दील यमुना में करीब 33 करोड़ लीटर सीवेज गिरता है । इस सबके बावजूद यमुना नदी मे हुये प्रजनन ने यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर एक सवाल खड़ा कर दिया है कि अगर हकीकत मे यमुना नदी मैली है तो फिर घडियाल कैसे प्रजनन कर रहे है।

बहरहाल, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के ठेठ बीहड़ों के बीच विचरण करने वाली स्वच्छ नदी चंबल में भारी संख्या में घड़ियालों और मगरमच्छों ने अपना आशियाना बना लिया है। औरैया, जालौन, इटावा, भिंड की सीमा पर पचनद तीर्थस्थल है, यहाँ पाँच नदियों यमुना, चम्बल, क्वारी, सिंध और पहुज का संगम होता है। अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव भीम ने यहां भगवान शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी। पचनद की एक नदी चम्बल जिसका पानी अन्य चारों नदियों से ज्यादा साफ और गहरा है। स्वच्छ पानी के चलते ही इस क्षेत्र में चम्बल नदी में बड़ी संख्या में घडियालों, मगरमच्छों, डॉल्फिनों को आसानी से देखा जा सकता है।

मगरमच्छ और घड़ियाल कभी-कभी नदी से बाहर तलहटी में आ जाते है, अंडे भी बाहर ही करते है। जानकारों की माने तो पचनद से लेकर इटावा के चकरनगर तक चम्बल नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ देश में सबसे ज्यादा यहीं पाये जाते है। अकेले इस क्षेत्र (पचनद से चकरनगर) की चम्बल नदी में 300 से ज्यादा घड़ियाल और मगरमच्छ पाये जाते है। हाल ही में मादा घड़ियालों ने लगभग 240 घडियालों को जन्म दिया है। घड़ियालों और मगरमच्छों के डर से सामान्य लोग इस क्षेत्र में चम्बल के किनारे नहीं जाते है। मगरमच्छों और घडियालों का रैन बसेरा हमेशा स्वच्छ और गहरे पानी में ही होता है, इसलिये इनके रहने और विचरने की सीमा पचनद के पहले ही समाप्त हो जाती है क्योंकि चम्बल के अलावा अन्य चारों नदियां प्रदूषित है।

ये भी पढ़े   जावड़ेकर साहेब यह नहीं बताये की भारत में "बाघिन" कितनी है? बाघों की आबादी 2967 तो हो गयी 

पर्यावरणविद दीपक विश्नोई का कहना है कि पचनद क्षेत्र का वातावरण बहुत ही सुरम्य और सुंदर है। चंबल राजस्थान से मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश में यमुना में मिलती है, जहां यह मिलती है उस क्षेत्र को पचनद कहते हैं क्योंकि यहीं पर सिंधु, पहुच और क्वारी नदी भी यमुना में मिलती है। पचनद मुख्य रूप से औरैया इटावा, जालौन व भिंड जनपद की सीमाओं पर स्थित है। उन्होंने बताया कि पिछले 7-8 सालों में चंबल नदी में पानी का बहाव लीन पीरियड (ग्रीष्म काल व शीत ऋतु) में गिरता जा रहा है, जिसका मुख्य कारण मध्यप्रदेश में कई स्थानों गांवों व शहरी क्षेत्र में जलापूर्ति के लिए चंबल का जल लगातार लिया जा रहा है।

विश्नोई ने कहा जिस कारण जलीय जीव जंतुओं को जल का आवश्यक उत्प्रवाह, जिसे मिनिमम एनवायरमेंट फ्लो भी कहते हैं वो नहीं मिल पा रहा है। शायद उस उत्प्रवाह का अध्ययन या विश्लेषण न हुआ हो, जबकि उसका अध्ययन या विश्लेषण करके वो ही फ्लो चंबल में सदैव मेंनटेन रहना चाहिए ताकि यहां के जलीय जीव जंतुओं की पूरी सुरक्षा की जा सके। कोटा बैराज से कितना फ्लो छोड़ा जाना चाहिए उसका मुख्य रूप से अध्ययन होना चाहिए और कोटा बैराज से उतना फ्लो सदैव चंबल में छोड़ा जाना चाहिए, विशेष कर लीन पिरियड में यह उत्प्रवाह बेहद जरूरी है।

पर्यावरणविद ने बताया कि 1979 में भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र को सेंचुरी घोषित किया गया था। चंबल नदी के पूरे सेंचुरी क्षेत्र (पचनद से वाह आगरा) में लगभग 18 सौ घड़ियाल, 600 मगरमच्छ और सौ के करीब डॉल्फिन हैं, जलीय जीव जंतुओं का यह एक तरह से केन्द्र है। यहां भारत की किसी भी नदी से ज्यादा घड़ियाल हैं, इनको संरक्षित तभी किया जा सकता है जब पानी का प्रवाह लगातार रहे और इनका शिकार न हो।

उन्होंने बताया कि पचनद पर कालेश्वर महादेव का सिद्ध मंदिर है जिस कारण यहां का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। यहां पर अन्य कई छोटे बड़े तीर्थ स्थल भी हैं। ये क्षेत्र महाभारत काल से भी जुड़ा है, किंवदंती है कि कालेश्वर महादेव की स्थापना पांडव भीम ने पूजा अर्चना कर की थी। यहां की और भी कई कहानियां प्रचलित हैं, बकासुर का वध भी यही पर हुआ था जिस कारण एक स्थान का नाम बकेवर है जो इटावा में है। धार्मिक के साथ-साथ जलीय जीव जंतुओं के प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पचनद का ये क्षेत्र है। (प्रदीप/वार्ता के सहयोग से)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here