“कहानी दो तस्वीरों की” और देश में आज सुबह 8 बजे तक 1501 लोगों की और साँसे रुकी, कुल 1,77,150 अब तक

कहानी दो तस्वीरों की और देश में आज सुबह 8 बजे तक 1501 लोगों की और साँसे रुकी, कुल 177150 अब तक

आदरणीय श्री हर्षवर्धन साहेब,

आप स्वस्थ रहे, आप कोरोना से संक्रमित ना हों, कोरोना देवी का आपके प्रति नजर और रुख “पॉजिटिव” नहीं हो, यह प्रार्थना आपका दुश्मन, आपका आलोचक भी करेगा। वजह यह है कि विगत एक साल और अधिक समय से कोरोना संक्रमित मरीज जब अंतिम सांस ले रहे हैं, खासकर भारत सरकार, प्रदेश सरकार के अस्पतालों में, चिकित्सालयों में, वहां उन मरीजों को “कुछ इसी तरह के किट में लपेट कर इधर-उधर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। अंतिम संस्कार हुआ अथवा नहीं, इसे आश्वस्त करना भी बहुत कठिन है। लेकिन आप, अपने जीवित शरीर में इस तरह के पोशाक पहनकर दिल्ली के अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों को देख रहे हैं – आप सच में एक बेहतरीन डाक्टर तो हैं ही, एक बेहतरीन मनुष्य ही नहीं, इंसान भी हैं।

ईश्वर से प्रार्थना करूँगा कि आप भारतवर्ष के शीघ्र की प्रधान मंत्री बनें और देश के लोगों को बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सफल रहें। विगत 14-माह में भारत ही नहीं, विश्व के पटल पर क्या हुआ, यह आप भी जानते हैं और राष्ट्र तो जानता ही है। इतना ही नहीं, भारत सरकार के आला मंत्रियों, चिकित्सा के क्षेत्र में लगे ‘फ्रंट-लाईन’ सेवकों को छोड़कर, सरकारी, अर्ध-सरकारी, निजी अस्पतालों के स्वामियों / डाक्टरों का कोरोना संक्रमित मरीजों के प्रति कैसा रहा है, कैसा है – यह भले व्यवस्था के लोग नहीं देख पाएं, लेकिन त्रिनेत्रधारी महादेव के कैमरे में सभी हैं।

डॉ हर्षवर्धन साहेब। विगत तीन-दशकों से एक दूसरे को जानते हैं। मैं तो जानता ही हूँ जब इण्डियन एक्सप्रेस का मैं एक रिपोर्टर था नब्बे के दसक के प्रारंभिक दिनों में और आप सप्ताह में न्यूनतम तीन दिन प्रेस रिलीज लेकर एक्सप्रेस / जनसत्ता के रिपोर्टिंग कक्ष में आते थे। हम सभी जानते थे आप एक बेहतरीन डाक्टर हैं, एक बेहतरीन इंसान है। आपके साथ आपके मित्र भी अक्सरहां हुआ करते थे डॉ विनय अग्रवाल, पुष्पांजलि नर्सिंग होम, विवेक विहार वाले। बाद में यह भी जान गए की आप जनसंघ/भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक “ब्लू-आईड बॉय” भी हैं और आप किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते हैं, रखना चाहते हैं; चाहे श्री मदनलाल खुराना हों या श्री साहेब सिंह वर्मा हों, चाहे भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हों, चाहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी हों, चाहे श्री लाल कृष्ण आडवाणी हो, चाहे अरुण जेटली हों, चाहे श्रीमती सुषमा स्वराज हो और आज चाहे देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह जी हों या चाहे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी हों – चाहे कोई हों – आपका स्वभाव का “मृदु” होना इस बात का प्रत्यक्षदर्शी गवाह है।

लेकिन डाक्टर साहेब, आज मन हताश हो गया। आज सुवह-सुवह एक फोन आया। आम तौर पर बहुत सुवह जैसे ही कोई फोन की घंटी बजती है, मन व्याकुल होने लगता है, भय वश। जब तक दूसरी छोड़ से “हेल्लो” आवाज सुनता हूँ, तब तक मन में अनेकानेक बातें, सभी नकारात्मक, उठने लगता है। आज भी कुछ वैसा ही था। घण्टी पत्नी के मोबाईल पर बजी और दूसरी छोड़ पर उसकी छोटी बहन थी। गला अवरुद्ध। आवाज रुक-रुक कर, अस्पष्ट। इधर मेरी पत्नी भी व्याकुल हो रही थी – सब ख़ैरियत तो नहीं दिख रहा था। फिर दूसरी छोड़ से आवाज आती है : “दीदी, सुधाकर की पत्नी का कोरोना के कारण, अस्पताल में बेड नहीं मिलने के कारण, ऑक्सीजन समय पर उपलब्ध नहीं होने के कारण देहांत हो गया। सुधाकर उसके पति का छोटा भाई है और एक बेहतरीन सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। सुधाकर को एक छोटा सा बच्चा है, कोई ढ़ाई-तीन साल का।

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डाक्टर साहेब, ईश्वर न करे ऐसा दिन किसी को देखना पड़े। लेकिन आप अपनी आखें कुछ पल बंद कर एक 80+ वर्ष के सास-ससुर, उनके हम-उम्र के माता-पिता, उसके पति और ढ़ाई-साल के बच्चे को अपने मानस-पटल पर लाएं, सोचें – एक वृद्ध माता-पिता, एक पति और एक दुधमुँहा बच्चे के लिए बज्रपात है न। उसके वृद्ध ससुर, पति अस्पतालों में चिल्लाते रहे, कोई तो बचाओ – कहते रहे, कोई तो एक बेड – दो पुकारते रहे, कोई तो आधा भी ऑक्सीजन का सिलिंडर दो ताकि सांस ले सके, जीवित रह सके – लेकिन कोई नहीं आया। न आपका स्वास्थ मंत्रालय, न आपके द्वारा किये जा रहे वायदे, न सरकारी सहायता – लोगों की साँसे रुक रहीं हैं। लोग मर रहे हैं डॉ हर्षवर्धन जी।

दिल्ली के अस्पतालों की आम स्थिति ऐसी ही है। अस्पताल का भवन है, बेड नहीं। अगर खुदा-न-खास्ते बेड मिल भी गया तो ऑक्सीजन का सिलिंडर नहीं है। अगर ऑक्सीजन का सिलिंडर खाली भी मिला तो भरने के लिए अस्पताल-गैस माफिया-प्रशासन की मिलीभगत से एक सिलिण्डर 14,000 से 18,000 तक। खाली लौटाने पर 8000 की कटौती और शेष राशि की वापसी, क़िस्त पर। अधिक बोलने, झगड़ने पर माँ-बहन की गालियां, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो। बहन भले नवजात हो, या माँ मृत्यु-सैय्या पर, इस लें-दें के पेशा में लगे लोगबागों में कोई भी वेदना नहीं, कोई भी संवेदना नहीं। सुधाकर की पत्नी की उम्र अभी कोई मरने वाली थी क्या? यह सवाल महज सुधाकर की मृत पत्नी का ही नहीं, दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और भारत के समस्त राज्यों में कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों, अस्पताल में, अस्पताल के बाहर, परिसर के अंदर शौचालयों के सामने, सड़कों पर, गलियों में उचित चिकित्सा के आभाव में, ऑक्सीजन सिलिंडर के आभाव में अन्तिम सांस लेने वाले प्रत्येक मृतक, उसके परिवार और परिजनों का है।

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कहते हैं एक महिला, एक बच्चा, एक वृद्ध जब कराहता है किसी के अमानवीय क्रिया-कलापों के लिए, तब बज्रपात होता है। समय दूर नहीं है – भारत के वे सभी लोगों के ऊपर बज्रपात होगा, चाहे वे किसी भी पद पर हों, किसी भी कार्य में हों – जिनका व्यवहार आज के इस कठिन परिस्थिति में अमानवीय हो रहा है।

सी आई आई टी एम, धनबाद के श्री विकास कुमार पाण्डेय जी बहुत ही दर्दनाक रूप से शब्दों को एक-एक कर बैठाया है, आज के अमानवीय व्यवस्था में। उनका कहना है: “कोरोना वायरस की दूसरी लहर दिन – प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। रोजाना लाखों लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। तो वहीं हजारों सांसे हर दिन अस्पताल में बेड और उचित ईलाज के अभाव में कोरोना से जंग हार रही है। मंजर इतना डराने वाला है कि अस्पताल में मरीजों के लिए जगह कम पड़ रही है। मरीज तड़प रहे हैं। तो वहीं परिजन बेबसी की हालत में चीखने – चिल्लाने को मजबूर हैं”

दूसरी तरफ डॉक्टर भी पशोपेश में पड़ें है कि वो इस बीमारी से लोगों निजात कैसे दिलाएं। कैसे दम तोड़ती सांसों में दोबारा से उम्मीद की किरण जगाएं। ऐसा क्या करें कि लगभग डेढ़ साल से दुनिया भर में तबाही मचा रहे कोरोना वायरस से जो अब और भी खतरनाक रूप अख्तियार कर चुका है।और तेजी से लोगों को मौत की आगोश में ले रहा है। उससे निजात मिलें। क्योंकि इस बेरहम कोरोना ने ना जाने अब तक कितनों के पिता- माता और कितने घरों की किलकारियां छीन ली। मंजर ऐसा है कि श्मशान में कोरोना से जान गंवा रहे लोगों के अंतिम संस्कार के लिए लाइनें लगीं हैं। श्मशान लाशों की ढेर में तब्दिल हुआ पड़ा है। लोगों की चीखने- चिल्लाने की आवाजें गूंज रही है। इन सब के बीच श्मशान में शवों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां कम पड़ रही हैं, तो वहीं कब्रगाह में दफनाने के लिए जगह कम पड़ रहे हैं।

लेकिन इस भयावह मंजर के बीच जो तस्वीर सामने आ रही हैं। वो और भी निराश करने वाला है। वजह हम- आप जैसे लोगों का सब कुछ जानते हुए लापरवाह होना। याद कीजिए 30 जनवरी 2020 का वो दिन जब चीन के वुहान से आई 20 वर्षीय छात्रा के रूप में भारत में पहली कोरोना संक्रमित मरीज की पहचान हुई थी। देशभर में हड़कंप मच गया था। हर तरफ लोगों में इसकी चर्चा थी कि कैसे इसे फैलने से रोका जाए। लेकिन वैसे कुछ लोग जो इसके प्रति उम समय भी लापरवाही थे उसका ही नतीजा है कि देश में कोरोना का आंकड़ा प्रतिदिन लाखों तक पहुंच गया। सरकार इसे रोकने में बेबस थी। जिसके कारण उन्हें देश भर में लॉकडाउन लगाना पड़ा था। लॉकडाउन के फैसले ने देश के रोजाना कमाने खाने वाले लोगों को सड़क पर ला दिया था। लोग भूख से मरने को विवश होने लगा।

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देश के हाईवे और सड़कों पर हजारों मजदूर अपने बीवी – बच्चों के साथ पैदल अपने घर के लिए चल पड़े थे। जिस किसी ने भी इस दृश्य को देखा उसकी आंखें मन हो गई। तो दूसरी तरफ कोरोना के प्रकोप में आकर लोग मर रहे थे। वो मंजर जब एक पति साइकल पर अपनी पत्नी का शव ले जा रहा था । सरकार भी विवश हो गई और जनता से सावधान रहने और कोरोना से जंग में सहयोग की अपील करने लगी। 2020 में इस आपदा से निपटने के लिए लोगों ने भी अपनी सूझ- बूझ का परिचय दिया था। लोगों ने बेवजह घर से ना निकलने में ही अपनी समझदारी समझी। कोरोना गाइडलाइन का बखूबी पालन किया। जिसके कारण पूरा शहर वीरान पड़ा था। सड़के सुनसान थी. बाजारों में लोग बेवजह भीड़ ना के बराबर लगा रहे थें। इसका परिणाम यह हुआ कि हमने इस कोरोना लगभग मात दे दिया था। कोरोना का चैन नहीं बन पा रहा था । परिणाम यह हुआ कि जिस कोरोना के मरीज हर दिन लाखों में मिल रहे थे। वो सैकड़ें आ गया। दूसरी तरफ देश के वैज्ञानिकों ने मिसाल पेश करते हुए वैक्सीन बना लिया । जिससे लोगों को लगने लगा कि हमने कोरोना से जंग में जीत हासिल कर ली।

लेकिन अब हमारे फिर से लापरवाह होने का ही नतीजा है कि कोरोना वायरस के प्रकोप ने एक बार फिर से अपनी रफ्तार पकड़ ली है। इस बार पिछली बार से भी अधिक भयावह स्थिति है। जिसके कारण एक बार फिर से पूरा देश लॉकडाउन यानि की वीरान और सुनसान होने के कगार पर खड़ा है। देश के विकास की गति जो पटरी पर पुनः लौटने का प्रयास कर रही थी। एक बार फिर लग रहा है कि वो थमने वाला है। जिसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ेगा। अगर इससे बचना है तो हम फिर से एक जुट होकर कोरोना के खिलाफ लड़ना होगा। बेवजह भीड़ लगाने से बचना होगा। मास्क लगाकर ही घर से निकलना पड़ेगा। जिला प्रशासन और सरकार की मुहिम दोबारा से साझेदार बनना पड़ेगा। ताकि देश में चल रहे मौत के मंजर पर विराम लग सके।

आपका शुभेक्षु,

शिवनाथ झा

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