विभिन्न स्वाद के “चीनी-कण्डोम” का कब्ज़ा हैं बाजार पर और कहते हैं इंडिजिनस आईटम खरीदें  

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी - चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग और भारत के गृह मंत्री अमित शाह -  सबों को तो आप सभी
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी - चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग और भारत के गृह मंत्री अमित शाह -  सबों को तो आप सभी "पहचानते" ही हैं 

विभिन्न स्वाद के, गंध के, महक के ”चीनी कण्डोम” से लेकर ”कार- स्टीयरिंग” तक, जब चीनी सामग्रियों का कब्ज़ा है भारतीय बाजार पर (जो बिना व्यवस्था और प्रशासन के साँठ-गाँठ के संभव नहीं है), भारत जितना सामान निर्यात करता हैं, चीन से उससे सात गुना अधिक सामान आयात करता हैं, देश में लघु-मध्यम-बड़े उद्योगों को राजनेतागण-कोर्पोरेटगण मार-मारकर नेस्तोनाबूद कर दिए हैं, फिर मोदी बाबू !! शाह बाबू !!! “मेक-इन-इण्डिया आईटम्स कोथाय बाबो ?  

विगत दिनों जब सावरमती यानि गाँधी के आश्रम के बरामदे पर पालथी मारकर भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ठहाका मारकर गुफ़्तगू कर रहे थे, तब मोदी जी को ही नहीं, भारत के 130 करोड़ लोग मजे ले रहे थे, ताली ठोक रहे थे – शायद वे आने वाली संकटों को जानकार भी अंजान बन रहे थे या फिर मजे ले रहे थे या फिर अपनी भूमि पर चीन के राष्ट्राध्यक्ष को पाकर आठवां आश्चर्य का अनुभव कर रहे थे – शायद फिर जीते जी यह दृश्य देख पाऊं अथवा नहीं। उन्हें क्या मालूम “चीन मौत का चक्रव्यूह रच रहा है गांधी  आश्रम में। “

विगत कई वर्षों से जब भारत के बाज़ारों में फोन से लेकर कण्डोम तक चीन अपना सामान बाढ़ की तरह भर रहा था, भारत के सैकड़ों-हज़ारों उत्पादक कम्पनियाँ (शायद ही कोई बचा है) जो चीन के सामानों पर अपना ठप्पा लगाकर भारत के करोड़ों-करोड़ लोगों को चूना लगा रहा था “भारतीय उत्पाद बताकर (मेक इन इण्डिया), उस समय न तो कोई भारतीय बोले और न ही सरकार और व्यवस्था के लोग (जो बोलने के लिए अधिकृत थे) क्योंकि “खजाना” भर रहा था – चाहे ‘टैक्स’ के  प में भारत सरकार का, या ‘लाभ’ के रूप में भारतीय उत्पादकों का, या फिर वचत के रूप में देशी उपभोक्ताओं का।   

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जो चीन के इस हरकत पर लिख रहे थे, जुलुस निकाल रहे थे, घरना दे रहे थे – शासन और व्यवस्था के लोगों को, चाहे वे खादी पहने हों या खाकी वर्दी में, उन्हें “आगाह” कर रहे थे, सबों को लग रहा था की चीन के बारे में लिखने वाला “देशद्रोही” है। 

परन्तु, जैसे ही “भारत के बाज़ारों में चीन-निर्मित कोरोना वायरस” का निर्यात हुआ – सभी चिचियाने लगे। और भारत के लोगों को “स्वदेशी वस्तुओं” के प्रति रुझान बनाने, खरीदने, दूसरों को खरीदने के लिए प्रेरित करने पर प्रेस कांफ्रेंस करने लगे। कहने लगे – भारत निर्मित सामानों को खरीदें, प्रश्रय दें। 

अरे महाशय, नेताजी – भारत में देशी कम्पनियाँ जीवित रहने दिए हैं आप लोग? 

राजनीति में, पैसे कमाने के चक्कर में, अपने-अपने “ईगो-वार” के चक्कर में, देश के उद्यमों को समाप्त कर विदेशी निवेशों को बढ़ाने के चक्कर में तो सारी कम्पनियाँ, चाहे लघु हों, मध्यम हों या बड़े – खत्म हो गए, दफ़न हो गए । अब उद्योग तो है नहीं और आप देशी वस्तुओं  खरीद-बिक्री की बात कर  रहे हैं। 

आप या आपके सीपा-सलाहकार “मेक इन इंडिया” का अभियान बुरी तरह असफलता का कारण ढूंढे होते। इसकी वैसे ही स्थिति हुई जैसे अटल बिहारी वाजपेयी का “साईनिंग इण्डिया” – अब बदलते वैश्विक परिदृश्य और चुनौतियों को देखते हुए सरकार अपना पैतरा बदल रही है – ये भी स्वदेशी अपनाओ के साथ दुनिया के लिए जरूरी चीजें देश में ही बनाओ (मेक इन इंडिया) का एक सम्मिश्रण है, जो अगर एक न्यूनतम सीमा तक भी सफल हो सका तो इसका फायदा दूरगामी होगा।  

अरे भैय्ये !!  राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के तत्वाधान में 1991 में स्थापित स्वदेश जागरण मंच इसी उद्देश्य से बना था। लेकिन हश्र क्या हुआ आपसे तो छिपा नहीं है। 

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कल माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह की बात को पढ़कर हंसी आ गयी।  शाह साहेब के अनुसार सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस के कैंटीनों में आगामी पहली जून से सिर्फ “इंडिजिनस प्रोडक्ट्स” ही बिकेंगे, यानि करीब दस लाख कर्मियों और उनके करीब पचास लाख परिवार के सदस्यगण सिर्फ “इंडिजिनस प्रोडक्ट्स” ही खरीद पाएंगे – यानि देश में अमन चैन रखने वाले, या फिर सीमा पर राष्ट्र की रक्षा करने वाले देश में उत्पादित वस्तुओं को ही खरीद पाएंगे। 

लगता है, गृह मंत्री इस बात को लिखना भूल गए की देश के शेष 130 लाख लोगबाग भारतवर्ष में सैकड़ों कार्पोरेट घरानों, नेताओं, उद्यमियों, व्यापारियों द्वारा संचालित 500 मॉलों में विदेशी मुल्कों में निर्मित/ब्रांड की वस्तुओं का खरीदारी करेंगे।” 

माननीय शाह साहेब स्पष्ट रूप से अपने विभिन्न ट्यूटों में कहे की गृह मंत्रालय का यह निर्णय माननीय  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के लोगों से अपील – वे भारत में बानी वस्तुओं का इस्तेमाल करें – के बाद  लिया है।   

इन आर्म्ड फोर्सेस में सीआरपीएफ / बीएसएफ / सीआईएसएफ / आईटीबीपी / एस एस बी /एन एस जी / असम राइफ़ल्स सम्मिलित हैं और ये कैंटीन औसतन 2800 करोड़ रुपये का सामान प्रतिवर्ष बेचते हैं।    

ज्ञातब्य है सुशील कुमार शर्मा जी वेब दुनिया पर कुछ दिन पूर्व लिखे थे ड्रैगन ने जिस तरीके से भारतीय बाज़ार पर शिकंजा कसा है उससे भारतीय उत्पादों की कमर  टूट गई है।  चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। भारत के कुल आयात का 6ठा हिस्सा  चीन से आता है। साल 2015-16 में भारत ने चीन को 9 अरब डॉलर यानी करीब 60 हजार  करोड़ रुपए के सामान का निर्यात किया जबकि चीन से हमने कहीं ज्यादा 61 अरब डॉलर  यानी करीब 4 लाख करोड़ रुपए का सामान आयात किया यानी निर्यात से करीब 6 गुना ज्यादा  सामान हम चीन से लेते हैं। 

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इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट, बड़ी-छोटी मशीनरी, ऑर्गेनिक केमिकल, फर्टिलाइजर, फर्नीचर, लाइटिंग,  मेडिकल और टेक्निकल इक्विपमेंट, लोहे और स्टील के प्रॉडक्ट। इसके साथ ही राउटर,  मोडेम, लेन केबल, एडॉप्टर, डिश, मोबाइल, मोबाइल टॉवर में लगने वाला  सामान, कैमरे, ड्रोन और भी बहुत से घर पर उपयोग किए जा रहे सामान जैसे टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, . गेम्स (सोनी,  माइक्रोसॉफ्ट), कार में लगने वाले सामान, बाइक में लगने वाले सामान, किचन के  बहुत से सामान, सभी चीन हैं। 

भारत वर्तमान में चीन से आयरन और स्टील 5.82 प्रतिशत, प्लास्टिक और उससे बनी चीजें 2.74 प्रतिशत, फोटोग्राफी उपकरण 2.09 प्रतिशत, बोट्‌स 2.05 प्रतिशत,  इलेक्ट्रानिक के 32.02, न्यूक्लियर रिएक्टर, बायलर्स और पार्ट्स के 17.01 प्रतिशत, आर्गनिक केमिकल्स 9.83 प्रतिशत फटिलाइजर्स 5.3 प्रतिशत, आयरन व स्टील से बनी चीजें 1.92 प्रतिशत और रेलवे के अलावा अन्य वाहनों के 1.81 प्रतिशत पुर्जे खरीदता है। भारत विगत वर्षों से सौन्दर्य प्रसाधन, रक्षा उपकरण के सामान से लेकर यात्रा-सुविधा के साधन जैसे रेल, मोटर-गाड़ी आदि के लगभग सभी पाट्‌र्स चीन से ही आयात करता है, फिर चीन की वस्तुओं के आयात पर बात करना बेकूफी भरी समझ में आती है। देश का बुनियादी ढांचा कृषि जब अभी चीन के यंत्रों और फटिलाइजर्स से होती है।   भारत निर्यात की तुलना में 7 गुना ज्यादा माल चीन से आयात करता है। अब तो धीरे-धीरे भारतीय कृषि पर भी चीनी आयातित सामानों का कब्ज़ा हो गया है। 

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